गोंडवाना की अचूक निशानेबाज, महान वीर, रानी दुर्गावती मण्डावी को बलिदान दिवस पर हूल जोहार

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"शेर को मैं ही मारूंगी" और आख़िर में मारा भी। बचपन में शिकार के दौरान यह कहने वाली रानी दुर्गावती के पिता महो??

आज गोंडवाना की अचूक निशानेबाज, महान वीर, रानी दुर्गावती मण्डावी का बलिदान दिवस है। हूल जोहार।

 

"शेर को मैं ही मारूंगी" और आख़िर में मारा भी। बचपन में शिकार के दौरान यह कहने वाली रानी दुर्गावती के पिता महोबा के राजा थे। ज्ञात इतिहास में आल्हा-ऊदल से लेकर आज तक बुन्देलखण्ड में सत्ता के अत्याचारों का प्रबल प्रतिकार करने वाले वीरों को जन्म देने वाली धरती रही है। अतीत में यह स्थान बौद्ध परम्परा से प्रभावित रहा है।

 

अकबर के सेनापति आसफ खां को दो बार पराजित करने वाली गोंडवाना की रानी दुर्गावती को धोखा एक ब्राम्हण सरदार ने दिया। उसने गढ़मंडल का सारा भेद आसफ खान को बता दिया।

 

आसफ खान ने अपनी हार का बदला लेने के लिए तीसरी बार गढ़मंडल पर आक्रमण किया। रानी ने अपने 15 वर्षीय पुत्र वीर नारायण के नेतृत्व में सेना भेजकर स्वयं एक टुकड़ी का नेतृत्व संभाला। दुश्मनों के छक्के छूटने लगे। उसी बीच रानी ने देखा कि उसका 15 का वर्ष का पुत्र घायल होकर घोड़े से गिर गया है। रानी विचलित न हुईं।

 

दुश्मनों का एक बाण रानी की आँख में जा लगा और दुसरा तीर रानी की गर्दन में लगा। रानी समझ गई की अब मृत्यु निश्चित है। यह सोचकर कि जीते जी दुश्मनों की पकड़ में न आऊँ उन्होंने अपनी ही तलवार अपनी छाती में भोंक ली और अपने प्राणों की बलि दे दी। जबलपुर में इनकी मृत्यु 24 जून सन 1564 को हो गयी।

 

रानी दुर्गावती ने लगभग 16 वर्षो तक संरक्षिका के रूप में शासन किया। भारत के इतिहास में रानी दुर्गावती और चाँदबीबी ही ऐसी वीर महिलाएं थी जिन्होंने अकबर की शक्तिशाली सेना का सामना किया तथा मुगलों के राज्य विस्तार को रोका।

 

मध्य भारत में उस समय भी गोंडों का मज़बूत शासन था जब राजपूत सामंत मुग़ल दरबार में सज़दे कर रहे थे और रण से भागकर राणा बन रहे थे।

Vikash Anand की कलम से...

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